डॉ दिवेश कुमार शर्मा
वर्तमान युग में सोशल मीडिया न केवल संवाद का एक सशक्त माध्यम बन चुका है, बल्कि यह समाज के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संरचना को भी प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, ट्विटर जैसे प्लेटफाम्र्स ने जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान को सरल बनाया है, वहीं इनका अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। यह अध्ययन युवाओं में सोशल मीडिया के उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध की मनोवैज्ञानिक पड़ताल करता है। शोध में यह स्पष्ट हुआ कि सोशल मीडिया पर अत्यधिक समय बिताने वाले व्यक्तियों में अवसाद, चिंता, अकेलापन, आत्म-संदेह, और आत्म-सम्मान की समस्या अधिक पाई जाती है। यह लेख सिद्ध करता है कि ऑनलाइन सामाजिक तुलना, सतत् स्क्रीन टाइम, और आभासी मान्यता की ललक मानसिक संतुलन को बाधित करती है। विशेष रूप से FOMO (Fear of Missing Out) और ऑनलाइन पहचान की चिंता ने युवा वर्ग में मानसिक अस्थिरता को जन्म दिया है। लेख में प्रस्तुत आँकड़ों, सैद्धांतिक आधारों और मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के माध्यम से यह बताया गया है कि डिजिटल प्लेटफार्म का संतुलित उपयोग ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। यह अध्ययन मनोवैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को यह सोचने पर विवश करता है कि सोशल मीडिया के विस्तार के इस युग में मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा कैसे की जाए।
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